भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी । बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया
एक अनचाहे दर्द की अनुभूति हो आई आपकी इस रचना में सब को मुकम्मल जहां कहां मिलती है बहुत ही अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबडे जिनकी वजह से दूर हो जीना इन्हेंं पडता,
जवाब देंहटाएंनहीं सम्मान और आदर उन्हें इनसे कभी मिलता.।
बहुत सुंदर रचना।
वाह! बहुत गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह, सुंदर अहसास के साथ साथ मर्म को छूती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंघर को स्वर्ग बनाने की परिपूर्ण विधि !
महज़ आकर्षण के लिए खुद को समेट रखा था
जवाब देंहटाएंहकीकत की ज़मीन पर जब ये पाँव रखा था
नहीं मिलता सबको जो मन ने चाहा होता है
स्वीकार करना चाहिए जो किस्मत में होता है ।।
आपने बखूबी प्रेम करने वालों के दर्द को बयाँ किया है जिनको अपनी पसंद का साथी न मिला हो ।
वाह!सुधा जी ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही उम्दा आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल.प्रिय सुधा जी आपकी लेखनी हर विषय पर कमाल करती है।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।