भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी । बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद आ.यशोदा जी!मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
हटाएंसादर आभार।
समय के साथ माँ का व्यवहार बच्चे के जीवन को सही दिशा देने के लिए बदलता रहता है।
जवाब देंहटाएंबच्चे का मासूम प्रश्न।
बहुत सुंदर रचना प्रिय सुधा जी।
सस्नेह।
जी, पर बच्चे कहाँ समझते हैं या सब समझते हुए माँ से छूट लेने के लिए मासूम सवालों में उलझाते हैं...
हटाएंसहृय धन्यवाद एवं आभार आपका।
कुछ बच्चे बहुत भावुक होते हैं। उनके मन में अनगिन प्रश्न तैरते रहते हैं। उन्हें क्या पता------ मां एक काम अनेक। बच्चा जब अबोध होता है तो उसका हर काम मां की जिम्मेवारी होती है पर बड़ा होने पर भी उसके मन कहीं न कहीं ये लालसा बनी रहती है कि मां उसे बच्चा ही समझे। बालक के इन्हीं मासूम भावों में बंधी रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंजी रेणु जी! रचना का भाव स्पष्ट कर सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
हटाएंकविता पढ़ते पढ़ते बालपन में मन प्रवेश कर गया। यही कविता की उपलब्धि है। बधाई!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका।
हटाएंबच्चों के मासूम प्रश्न और माँ की सही ज़िम्मेदारी ...खूबसूरती से शब्दों में बांधा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपकाउत्साहवर्धन हेतु।
हटाएंउम्र के साथ साथ माँ का बच्चों के प्रति व्यवहार कैसा बदलता है और इससे बच्चे के मन मे कैसे कैसे सवाल आते है इसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने सुधा दी।
जवाब देंहटाएंजी, हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी! रचना का मर्म स्पष्ट करने हेतु।
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