प्रस्तुत आलेख कोई कहानी या कल्पना नहीं, अपितु सत्य घटना है ।
आज मॉर्निंग वॉक पर काफी आगे निकल गयी । सड़क के पास बने स्टॉप की बैंच पर बैठी थोडा सुस्ताने के लिए । तभी सिक्योरिटी गार्ड को किसी पर गुस्सा करते हुए सुना, एक दो लोग भी वहाँ इकट्ठा होने लगे ।
मैं भी आगे बढी, देखा एक आदमी बीच रोड़ पर लेटा है, नशे की हालत में । गार्ड उसे उठाने की कोशिश कर रहा है,गुस्से के साथ ।
तभी एक अधेड़ उम्र की महिला ने आकर गार्ड के साथ उस आदमी को उठाया और किनारे ले जाकर गार्ड का शुक्रिया किया ।
नशेड़ी शायद उस महिला का पति था। थोड़ा आँखें खोलते हुए,महिला के हाथ से खुद को छुड़ाते हुए, लड़खड़़ाती आवाज में चिल्ला कर बोला, "मैं घर नहीं आउँगा"।
ओह ! तो जनाब घर के गुस्से में पीकर आये हैं; सोच कर मैने नजरें फेर ली, और फिर वापस वहीं जाकर बैठ गयी, थोड़ी देर बैठने के बाद घर के लिए निकली तो देखा रास्ते मे पुल पर खडी वही महिला गुस्से मे बड़बड़ा रही थी, गला रूँधा हुआ था, चेहरे पर गुस्सा, दु:ख, खीज और चिंता ।
वह परेशान होकर पुल से नीचे की तरफ देख रही थी, एक हाथ से सिर पर रखे पल्लू को पकडे थी ,जो सुबह की मन्द हवा के झोंके से उड़ना चाहता था, महिला पूरी कोशिश से पल्लू संभाले थी जैसे वहाँ पर उसके ससुरजी हों ।
मैंने भी नीचे झाँका,तारबाड़ के पीछे ,खेतों से होते हुये नदी की तरफ,वही आदमी लडखड़ाती चाल से चला जा रहा है,बेपरवाह , अपनी ही धुन में ।
उसे देखकर लगता था जाने कब गिर पडेगा, वह खेतों को लाँघकर नीचे नदी की तरफ जा रहा था, महिला उसे वापस आने को कह रही थी, कभी कहती "जो हुआ छोड़ दो,माफ कर दो, मान लिया मैंने, ये सब मेरी ही गलती है, माफ कर दो ,घर आ जाओ" ।
लेकिन वह न रुका । अब महिला गुस्से मे "जा - जा...कभी मत आ मेरी बला से , मैं जा रही हूँ,बच्चे परेशान हो रहे होंगे" कहते हुए आगे बढ़ी,कुछ इस तरह कि उसे दिखाई न दे । शायद मन मे सोची होगी कि उसे न देख कर शायद वह वापस आ जाय ।
वापस आने के बजाय वह तो और नीचे खेत मे जाकर घास पर लम्बा होकर लेट गया । अब महिला से न रहा गया,शायद वह डर रही थी कि कहीं उसे कुछ हो न जाय, कहीं घास में साँप...या फिर वह नदी मे खुद के साथ कुछ.... । बेचारी तारबाड़ लाँघकर वहीं चली गयी उसे लेने....लेने की कोशिश करने, वैसे ही बड़बड़ाती हुई, मैं ज्यादा वहाँ रुक नही पाई बोझिल मन घर की तरफ लौटी,मन चाहता था,महिला से कहूँ वह घर जाए, नशा उतरने पर वो भी आ जायेगा । पर कैसे ? एक पत्नी से ये सब कैसे कहूँ ? क्या वह ऐसा कर पायेगी ? शायद नही, जो सिर के पल्लू को उड़ने के लिए नही छोड़ सकती, वह अपने पति को उसके हाल पर कैसे छोड़ सकती है ।
वाह बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, सुधा जी आपका हृदयतल से आभार...।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !मेरी इतनी पुरानी रचना साझा करने हेतु ।
हटाएंगहन एहसास जो एक दृश्य से उत्पन्न हुए और उन्हें शब्द दिए आपने ।
जवाब देंहटाएंऔर एक दर्शन भी
"जो सिर के पल्लू को उडने के लिए नही छोड़ सकती, वह अपने पति को उसके हाल पर कैसे छोड़ सकती है ।
सच...
हृदयतल से धन्यवाद जवं आभार कुसुम जी !
हटाएंओह!एकनशाखोर की पीडिता पत्नी का दुख शब्दों में साकार हो मन को झझकोर गया प्रिय सुधा जी। एकआम भारतीय नारी जो बच्चों के साथ-साथ एक पति को,भले वह कैसा भी क्यों न हो,भी हर तरह से सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।उसके जीवन की सभी खुशियाँ और रंग इसी पति नाम के प्राणी से ही तो हैं,भले वह नशेडी हो या गजेडी।
जवाब देंहटाएंहो।
जी सही कहा आपने...
हटाएंअत्यंत आभार जवं धन्यवाद।
उत्तम कहानी
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.कैलाश जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदयतल से धन्यवाद आ. संगीता जी ! मेरे भूले बिसरे सृजन को मंच प्रदान करने हेतु ।
हटाएंसादर आभार ।
स्त्री अपनी स्थिति की स्व जिम्मेदार होती है
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम, मन को झकझोरती हुई घटना । सच है कि एक स्त्री अपने पति और परिवार के दुर्व्यवहार के आगे कितनी असहाय हो जाती है, यही हमारे समाज का सत्य है । स्त्री सशक्तिकरण की बड़ी -बड़ी बातें और बड़े -बड़े सेमीनार मात्र नाम के लिए सशक्तिकरण हैं क्योंकि वहाँ बोलने वाली एण्ड सुनने वाली महिलायें पहले से सशक्त होतीं हैं । वास्तविक सशक्तिकरण तो तब आए जब हम ऐसी महिलाओं और इनके परिवारों तक पहुँच कर उन्हें जागरूक और सशक्त करें । वैसे ऐसी परिस्थिति में स्त्री को ही इस मानसिकता से बाहर आना होगा कि उसके जीवन में आया यह पति नाम का प्राणी उसके सभी सुखों का आधार है, चुपचाप से अपने घर जाना चाहिए और जब पति घर पहुंचे तो उसके मुँह पे दरवाजा बंद कर के अच्छा सबक सिखाना चाहिए । ऐसे पति के साथ रहने से अच्छा तो वह अकेले ही अधिक सुखी रह लेगी ।
जवाब देंहटाएंएक साधारण स्त्री की मनोदशा और हृदय की व्यथा की ऐसा सजीव चित्रण किया है आपने कि दृश्य चलचित्र की भाँति आँखों में तैर गये सुधा जी।
जवाब देंहटाएंबेहद संवेदनशील मनोभाव लिखा है आपने और 'जो सिर के पल्लू को उडने के लिए नही छोड़ सकती, वह अपने पति को उसके हाल पर कैसे छोड़ सकती है ।' इन पंक्तियों में संपूर्ण सार है।
प्रिय सुधा जी, एक बार फिर से एक पत्नी की आन्तरिक पीड़ा को अनुभव किया।एक कड़वी सच्चाई और परमपरागत नारी के जीवन की जीवन्त दास्तान शायद समाज के हर गली हर कुचे की कहानी है।सस्नेह--
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसच में भारतीय समाज में नारी को कितनी तरह की यंत्रणाएं झेलनी पड़ती हैं, ऊपर से नशाखोरी में पति का पत्नी को परेशान करना तो आम बात है, स्त्री मन के घर्षण पर संवेदना से परिपूर्ण उत्कृष्ट आलेख ।
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