बिना आपके भला जिंदगी कहाँ सँवरती
पिता दिवस पर आज आपकी यादें लेकर,
हुई लेखनी मौन बस आँखें हैं बरसती ।
वो बीता बचपन दूर कहीं यादों में झिलमिल
झलक आपकी बस माँ की आँखों में मिलती।
वीरानी राहों में तन्हा सफर हमारा,
हर बढें कदम पर ज्यों शाबाशी आप से मिलती ।
मन का हौसला बन के हमेशा साथ हो पापा !
बिना आपके भला जिन्दगी कहाँ सँवरती ।
ना होकर भी सदा अवलम्बन रहे हमारे,
पिता से बढ़कर कौन प्रभु की पूजा बनती ।
हर पल अपने होने का एहसास कराया,
मन आल्हादित पर दर्शन को आँख तरसती ।
हर इक जन्म में पिता आप ही रहें हमारे,
काश प्रभु से जीते जी यह आशीष मिलती ।।
चित्र , साभार photopin.com से...
टिप्पणियाँ
सुधा जी !
सच जैसे मेरे ही भाव हैं।
वो नहीं होकर भी हैं हममें, अपने संस्कार रोप गये हैं अपनी दृढ़ता अपना दर्शन सब हम पर दिखता तो है।
सादर आभार।
सादर आभार।
पिता से बढ़कर कौन प्रभु की पूजा बनती
हर पल अपने होने का एहसास कराया
मन आल्हादित पर दर्शन को आँख तरसती
बहुत सुंदर रचना। और हाँ ओ हमेशा ही साथ हैं हमारे विचारों में,हमारे भावों में, हमारे चिंतन में ।
पिता जी से अटूट लगाव ही है जो हर जन्म में बस उन्हीं की सन्तान होना चाहते हैं.
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सादर आभार।
सही कहा आपने कि पिता दुनिया में ना होने पर भी आजीवन साथ होते हैं।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
सादर आभार।
बिना आपके भला जिन्दगी कहाँ सँवरती
अनुपम कृति
बिना आपके भला जिन्दगी कहाँ सँवरती
बहुत सुन्दर रचना है !!शायद प्रत्येक संवेदनशील ह्रदय के यही उद्गार होते हैं पिता के लिए !!
सादर आभार।
मन आल्हादित पर दर्शन को आँख तरसती
हर इक जन्म में पिता आप ही रहें हमारे
काश प्रभु से जीते जी यह आशीष मिलती ।।
हर बेटी के मन के भावों को शब्द दे दिए आपने सुधा जी,सादर नमन आपको
सादर आभार।
मर्मस्पर्शी ।
बहुत सुन्दर ...
वो बीता बचपन दूर कहीं यादों में झिलमिल
झलक आपकी बस माँ की आँखों में मिलती
सुधा जी, आपने अपने पिताजी को प्यार से ऐसे याद किया है कि मुझे अपने पिताजी की याद आ गयी.
आपके आशीर्वचन हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।