घर लाकर मैंंने गमले सजाये
मन की तन्हाई को दूर कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
हवा जब चली तो ये सरसराये
मीठी सी सरगम ज्यों गुनगनाये
सुवासित सुसज्जित सदन कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
इक रोज मुझको बहुत क्रोध आया
गुस्से में मैंंने इनको बहुत कुछ सुनाया।
न रूठे न टूटे मुझपे, स्वस्यचित्त रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
खुशी में मेरी ये भी खुशियाँँ मनाते
खिला फूल तितली भौंरे सभी को बुलाते
उदासीन मन उल्लासित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
मुसीबतों में जब मैंने मन उलझाया
मेरे गुलाब ने प्यारा पुष्प तब खिलाया
आशान्वित मन मेरा कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ।
धूल भरी आँधी या तूफान आये
घर के बड़ों सा पहले ये ही टकरायेंं
घर-आँगन सुरक्षित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
चित्र साभार गूगल से...
सुवासित सुसज्जित सदन कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
इक रोज मुझको बहुत क्रोध आया
गुस्से में मैंंने इनको बहुत कुछ सुनाया।
न रूठे न टूटे मुझपे, स्वस्यचित्त रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
खुशी में मेरी ये भी खुशियाँँ मनाते
खिला फूल तितली भौंरे सभी को बुलाते
उदासीन मन उल्लासित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
मुसीबतों में जब मैंने मन उलझाया
मेरे गुलाब ने प्यारा पुष्प तब खिलाया
आशान्वित मन मेरा कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ।
धूल भरी आँधी या तूफान आये
घर के बड़ों सा पहले ये ही टकरायेंं
घर-आँगन सुरक्षित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
चित्र साभार गूगल से...
48 टिप्पणियां:
वाह! फूलों सी महकती रचना।
बहुत कुछ कह गई ये रचना। अपनेपन का एहसास जुड़ जाता है गमले में लगे पौधों से।
वाह बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत सुंदर जिन भावों को हम शब्दों में बयां नही कर पाते उनको यह कविता कह गयी।स्वाभावतः हम सजीव निर्जीव सभी को मन से लगा लेते है। किन्तु पुष्प के लिए अपनी अभिलाषा वाकई बहुत सुंदर।
बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति सुधा जी बधाई
पौधों के संग संग जीवन वास्तव में महकने लगता है
घर आंगन को सुरक्षित कर रहे ये अपनों के जैसे
अपने के जैसे अपने लगे यह .......
वाहह्हह... आपके लिखे शब्द आपके भावों की खुशबू से सुवासित हो रहे..👍👍
बहुत सुन्दर 👌👌
मुसीबतों में जब मैंने मन उलझाया
मेरे गुलाब ने प्यारा पुष्प तब खिलाया
आशान्वित मन मेरा कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये........
बहुत सुंदर रचना 👌👌
बहुत खूब सुधा जी !! फूलों सी सुवासित सुरभित रचना ।
हार्दिक धन्यवाद, विश्वमोहन जी !
सादर आभार...
हृदयतल से आभार एवं धन्यवाद, पुरुषोत्तम जी!
हार्दिक धन्यवाद, अभिलाषा जी !
सस्नेह आभार....
सस्नेह आभार, भाई !
हार्दिक धन्यवाद, रितु जी !
सस्नेह आभार....
हृदयतल से धन्यवाद,श्वेता जी !
सस्नेह आभार....।
बहुत बहुत धन्यवाद , अनीता जी !
प्राकृति की हर चीज जीवित प्राणमय होती है ...
पुष्प, पौधे तो अब विज्ञानिकों ने भी साबित कर दिया है की प्रेम, उलास और गुस्से को, हाथों के टच को महसूस कर पाते हैं और उसी अनुसार फलते फूलते भी हैं और मुरझा भी जाते हैं ... किसी न किसी रूप में अपनी बात कह जाते हैं ...
भावपूर्ण और मन से लिखी इस रचना के माध्यम से कितना गहरा सन्देश है की प्राकृति से संवाद हो तो जीवन का एक साथी ज्यादा हो जाता है ...
आपकी लिखी रचना मंगलवार 26 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुधा दी,जब हम पेडों की देखभाल करते हैं तो उनके मुरझाने पर या बंदरो द्वारा उन्हें हानी पहुंचाने पर हमें भी बहुत दुख होता हैं। क्योंकि वो भी हमारे अपने बन जाते हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
हृदयतल से आभार लोकेश जी !
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार,अनुराधा जी!
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी !
सस्नेह आभार...
सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से धन्यवाद, नासवा जी !
सही कहा पौधों के रूप में जीवन का एक साथी ज्यादा हो जाता है।
सादर आभार...
बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा जी !मेरी रचना साझा करने हेतु।
सादर आभार ....
जी, ज्योति जी!पौधों से भी इतना अपनापन हो जाता है ये मैंने हाल ही में महसूस किया जब इन पौधों के साथ वक्त बिताया इनकी देखभाल अपने हाथों से की। बहुत ही सुखद अनुभव है ये...
आपका तहेदिल से शुक्रिया एवं आभार उत्साहवर्धन के लिए...
bahut hi sundar ahivayakt kiya ha aapne. mun gadgad ho gaya.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...ब्लॉग पर आपका स्वागत है...Glory Prachanda ji
मुझे बहुत ज्यादा खेद है पम्मी जी आपके अनमोल
आशीर्वचन मुझसे डिलीट हो गये काश मैं उन्हेंं दुबारा पा सकती....
आपका आना और मेरी रचना पढना ये भी मेरे लिए कम नहीं है हृदयतल से आभार आपका...
बहुत ही सुंदर.. रचना सुधा जी ,सादर स्नेह
हृदयतल से धन्यवाद, कामिनी जी !
सस्नेह आभार...
सच में प्रकृति से अच्छा मित्र कोई नहीं है... बहुत सुन्दर रचना..
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार, सर!
बहुत सुंदर भाव सुधा जी। आपको हार्दिक बधाई।
वाह , बहुत खूब !
बहुत बहुत धन्यवाद विरेन्द्र जी !
सादर आभार....
हृदयतल से धन्यवाद सक्सेना जी!
सादर आभार...
प्रिय सुधा बहन -- आपकी ये रचना बहुत पहले पढ़ ली थी पर इस पर लिख ना पाई | पुष्प प्रेम प्रकृति प्रेमी होने का प्रतीक है | फूल हमे क्या क्या ना देते | ये अबोले रहकर भी अपना प्यार जता देते हैं | अपने लगाई और अपनी पसंद के फूलों की बात ही कुछ और है | ये शिशुवत प्यारे हो ज्स्स्ते हैं | आपकी रचना तो सुंदर है ही चित्र भी कम नहीं और यदि चित्र आपका है तो आपकी मुस्कान भी गुलाब की मुस्कान से कम नही | फूलों के साथ ये मुस्कान यूँ ही खिली रहे | मेरी हार्दिक शुभकामनायें और प्यार आपके लिए |
आपका तहेदिल से धन्यवाद रेणु जी!
आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है...ये चित्र मेरा नहीं है रेणु जी ये गूगल से लिया है।
सस्नेह आभार....
मनभावन, सरल शब्दों में सुन्दर रचना.
बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी !
सादर आभार..
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अपनी लगाई बगिया में फूलों का खिलना बहुत आनंदित करता है । और बहुत सारी विषमता सहने के बाद जीवन जीने की कला सिखाता है, कुछ पौधे बीज से कुछ पौधे कटिंग से उगते हैं, और जिस तरह धीरे-धीरे खिलते हैं उसी तरह हमें भी जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं । बहुत सुंदर सराहनीय सृजन के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं सुधा जी ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!
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