पढे-लिखे ,डिग्रीधारी
सक्षम,समृद्ध, सुशिक्षित
झेल रहे बेरोजगारी।
कर्ज ले,प्राप्त की उच्च शिक्षा,
अब सेठजी के ताने सुनते।
परेशान ये मानसिक तनाव से,
आत्महत्या के रास्ते ढूँढते।
माँ,बहनों के दु:ख जो सह न सके,
वे अभागे गरीबी मिटाने के वास्ते,
परचून की दुकान पर मिर्ची तोलते।
तो कुछ सैल्समैन बन गली-गली डोलते।
तो कुछ सैल्समैन बन गली-गली डोलते।
कुछ प्रशिक्षित नव-युवा,
आन्दोलन कर धरने पर बैठते
नारेबाजी के तुक्के भिडाते,
मंत्री जी की राह ताकते,
नौकरी की गुहार लगाते।
तो कुछ विदेशी कम्पनियों की सदस्यता
में धन-जन जुटाने के जुगाड़ लगाते
हमारे सुशिक्षित नवयुवक,
निठल्ले ,निकम्मे कहलाते।
बेरोजगारी इनके लिये अभिशाप नहीं तो और क्या है।
अपने देश का ये दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है ?....
(सुधा देवरानी)
तो कुछ विदेशी कम्पनियों की सदस्यता
में धन-जन जुटाने के जुगाड़ लगाते
हमारे सुशिक्षित नवयुवक,
निठल्ले ,निकम्मे कहलाते।
बेरोजगारी इनके लिये अभिशाप नहीं तो और क्या है।
अपने देश का ये दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है ?....
(सुधा देवरानी)